गुरुवार, 16 अप्रैल 2009

महान मीडिया



आज की ताज़ा खबर, आज की ताज़ा खबर… 'कसाब की दाल में नमक ज्यादा', आज की ताज़ा खबर….. .
चौंकिए मत, क्या मजाक है यार, आप चौंके भी नहीं होंगे क्योंकि हमारी महान मीडिया कुछ समय बाद ऐसी खबरें बनाने लगे तो कोई बड़ी बात नहीं. आप पिछले कुछ महीनों की ख़बरों पर ज़रा गौर फरमाइए, 'कसाब की रिमांड एक हफ्ते और बढ़ी', 'कसाब ने माना कि वो पाकिस्तानी है', 'कसाब मेरा बेटा है-एक पाकिस्तानी का दावा', 'कसाब मेरा खोया हुआ बेटा-एक इंडियन मां', 'जेल के अन्दर बम-रोधक जेल बनेगी कसाब के लिए', 'कसाब के लिए वकील की खोज तेज़', 'अंजलि वाघमारे लडेंगी कसाब के बचाव में', 'गांधी की आत्म-कथा पढ़ रहा है कसाब' वगैरह-वगैरह…. अरे भाई, ये महिमामंडन क्यों? कसाब न हुआ,कोई हीरो हो गया। जरा सोचिए ये सब देख कर उन्नीकृष्णन, करकरे, सालसकर और कामटे जैसे शहीदों पर क्या गुजरती होगी। अरे इतनी बार न्यूज चैनलों ने उन वीरों और शहीदों का भी नाम नहीं लिया जो हंसते-हंसते देश के लिए शहीद हो गए। पर मुझे लगता है कि इस सब के लिए मीडिया वालों को दोषी ठहराना भी सही नहीं है, इन बेचारों के लिए तो रोज़ी-रोटी देश और इज्ज़त से प्यारी हो गई है। तभी 'काली मुर्गी ने सफ़ेद अण्डे दिए' ब्रेकिंग न्यूज़ बनाते हैं और चुनावी बरसात का मौसम आते ही ये भी सत्ताधारी सरकार को पुनः बहाल करने के 'अभियान'(साजिश नहीं कह सकता, ये शब्द चुनाव आयोग को भड़का सकता है खामख्वाह मुझ पर भी रासुका लग सकती है) के तहत अघोषित, अप्रमाणित, गठबंधन बना लेते हैं।आपकी जानकारी के लिए बता दूं कि मैं भी मीडिया जगत से ही हूं और इसका मुझे बेहद अफसोस है। अफसोस क्यों हैं ये शायद आप अब तक समझ गए होंगे। देश में मीडिया की ऐसी दुर्दशा होगी कभी सोचा नहीं था। 

बुधवार, 15 अप्रैल 2009

खाते जाओ,खाते जाओ,जूतों के गुण गाते जाओ


जूते खाने वालों में गृहमंत्री पी चिदंबरम दूसरे भारतीय हस्ती बन गए हैं। कांग्रेस मुख्यालय में एक प्रेस कोंफ्रेंस के दौरान दैनिक जागरण के पत्रकार जरनैल सिंह ने गृह मंत्री के ऊपर जूता चला दिया। हालाँकि बुश की तरह गृहमंत्री भी अपनी फुर्ती से बच गए। करनैल सिंह ने मीडिया को बताया कि उसे कांग्रेस से कोई नाराजगी नहीं है। लेकिन चुनाव से पहले जिस तरह से लोगों को सीबीआई क्लीन चिट दे रही है वो ग़लत है और इसी को लेकर गृहमंत्री पर जूता फेंका। जरनैल ने कहा भले ही मेरा तरीका एक पत्रकार होने के नाते ग़लत था। पर, मुझे अफ़सोस नही है। दरअसल, कांग्रेस दफ्तर में एक प्रेस कांफ्रेंस आयोजित की गई थी। इस दौरान 84 के सिख दंगो के ऊपर चर्चा होने लगी। सवाल - जवाब के दौरान बढ़ती गहमा-गहमी के बीच पेशे से पत्रकार जरनैल सिंह ने विरोध जताते हुए गृहमंत्री चिदंबरम के ऊपर जूता चला दिया। इसी के साथ चिदंबरम का नाम जूते खाने वाले भारतीयों में दूसरे और विश्व स्तर पर चौथे चर्चित व्यक्तियों में शामिल हो गया। इससे पहले पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश, चीन के प्रधानमंत्री 'वेन जिअवाओ' और बुकर सम्मान से सम्मानित अरुंधती रॉय के साथ ऐसी घटना हो चुकी है। इसी साल फ़रवरी को दिल्ली विश्वविद्यालय के आर्ट्स फैकल्टी में आयोजित एक कार्यक्रम के दौरान अरुंधती रॉय को जूते खाने वालों की लिस्ट में शुमार होना पड़ा था। अरुंधती रॉय के उस बयान का खंडन किया जिसमे उन्होंने कहा था की कश्मीर, पाकिस्तान को दे देना चाहिए। अजमल कसाब के मामले पर उन्होंने ये टिप्पणी की थी जिससे सभी युवा नाराज़ दिखे। तभी एख युवक आशिफ ने अरुंधती राय के ऊपर जूता चला दिया जिसके बाद में जंतर मंतर पर ये जूता 1 लाख 11 हजार रूपये में नीलम कर दिया गया था। फिलहाल, गृहमंत्री के ऊपर जूता फेंके जाने से नेतागण सकते में हैं। मीडिया में इस बात को लेकर बहस शुरू हो गई है कि क्या विरोध का ये तरीका उचित है?  विरोध का ये तरीका कितना उचित है ये तो अलग मुद्दा है।चुनावों के इस मौसम में नेताओ को सबसे ज्यादा खतर इन जूतों से ही तो है। क्या पता कौन सा विरोधी कब जूते से वार कर दे?  जो भी हो विरोध के सारे तरीको पर जूता फेंकना भारी पड़ता दिख रहा है।