रविवार, 22 मार्च 2009

आखिर हमने विरासत में युवाओं को क्या दिया है?



हाल ही में खबर पढ़ी कि एक एयर होस्टेस ने छत से कूदकर खुदकुशी कर ली। यही नहीं, लगभग हर रोज अखबारों में कुछ-न- कुछ ऐसा लिखा होता है, जो सोचने पर मजबूर कर देता है कि हमारी युवा पीढ़ी किस दिशा में जा रही है। हो सकता है, लोग यह भी सोचते होंगे कि आज का युवा खुद को संभाल पाने की स्थिति में नहीं है। वह इस देश, इस समाज और यहां तक कि अपनी जिंदगी को भी हल्केपन में ले रहा है। मगर एक बात मेरे मन को बहुत खलती है। जो लोग उन्हें दोषी ठहराते हैं, क्या उन्होंने कभी सोचा है कि आखिर हमने विरासत में युवाओं को क्या दिया है? ऐसा नहीं है कि सिर्फ आज के समाज में ही ऐसी घटनाएं हो रही हैं, जो निंदनीय हैं। यह सब हमारे समय में भी होता था और आज भी हो रहा है। मगर इन सबके लिए किसी एक जेनरेशन को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। आज के युवा उसी में जी रहे हैं, जो दुनिया हमने उन्हें विरासत में दी है। हमने उनको ऐसी दुनिया दी है, जिसमें भावना या आदर्श जैसी चीजों के कोई मायने नहीं है। जो कुछ है, वह सिर्फ पैसा ही है। जहां इंसान को इंसान से हमदर्दी नहीं है। मशीनी जिंदगी में सिर्फ स्वार्थ ही सबसे ऊपर हो गया है। हम सिर्फ उन्हें दोषी नहीं ठहरा सकते क्योंकि गलती हमारी भी है। यह समाज, यह सोच और यह दुनिया उन्हें हमारी ही देन है। अगर हमने उन्हें बेहतर समाज दिया होता तो शायद नजारा कुछ और होता। इस युग में युवाओं को अपने इतिहास से अवगत होना होगा। उन्हें जानना होगा कि हमारे देश में ही वे सब महान लोग पैदा हुए हैं, जिनमें समाज को बदलने की कुव्वत थी और जिन्होंने उसे बदला भी। युवाओं को अपने देश की राजनीति समझनी होगी। उन्हें इसमें दखल रखना होगा। मौका आता नहीं है, बल्कि लाना पड़ता है। अगर अपना हक चाहिए तो लड़ना पड़ेगा। अपने लीगल सिस्टम पर यकीन करना होगा और अपनी लड़ाई अपने तरीके से लड़नी होगी। हर समस्या पर टिप्पणी करनी होगी। मैं जानता हूं कि यह सब आसान नहीं है, मगर आसान तो कुछ नहीं होता। अगर दुनिया को बदलना है तो करना ही पड़ेगा। उनके साथ कुछ जिम्मेदारी हमारी भी है। आज का युवा भाषण पर यकीन नहीं करता। हमें उनके सामने आदर्श रखने होंगे, ताकि वे उन पर चलना सीख सकें। सिर्फ लफ्फाजी से काम नहीं चलेगा। उन्हें जमीनी हकीकत से रूबरू करवाना होगा। जब समाज में आदर्श रह ही नहीं गए तो बेचारा यूथ करे क्या? किसके विचारों को अपनाए और किसके पदचिह्नों पर चले। लोग यह मान चले हैं कि युवा पीढ़ी बहुत तनाव में जीती है बल्कि मैं तो कहता हूं कि वे अब तक स्ट्रेस ले ही नहीं रहे। यह स्ट्रेस नई पीढ़ी को सही दिशा में लेना होगा। उन्हें समझना होगा कि लोग अपने फायदे के लिए उन्हें कैसे कंट्रोल कर रहे हैं, कैसे उनका शोषण हो रहा है और सिर्फ सपने दिखाए जा रहे हैं। सिर्फ पैसा कमाना या एक खास तरह की लाइफस्टाइल जीना ही जिंदगी का मकसद नहीं होता। हालांकि एकाएक समाज को बदल देने का गुरुमंत्र तो किसी के पास नहीं है। यों भी कोई भी समाज आदर्श समाज नहीं होता। कुछ खामियां हर समाज में होती हैं। बदलाव एक साथ अपेक्षित नहीं है, मगर जो जहां है वहां तो बेहतर कर ही सकता है। एक निर्माता बेहतर फिल्म बनाए, एक पुलिसवाला भ्रष्ट न हो, सरकारी दफ्तर वाले अपनी जिम्मेदारी समझें यानी समाज के हर वर्ग का आदमी अपना काम ईमानदारी से करेगा तो ही समाज बदलेगा। तनाव में रहकर जान देने से या सिस्टम के आगे हार मान लेने से कुछ नहीं होगा। यह दुनिया और यह समाज युवाओं का है। यह बात उन्हें समझनी होगी और उसे बेहतर बनाने की जिम्मेदारी भी उन्हीं की है, जो उन्हें ही उठानी पड़ेगी।

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत अच्छे .......
    हिंदी ब्लॉग जगत में आपका स्वागत है .........

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  2. ज़माना भारतीय युवाओं की और देख रहा है और युवा ......
    हिन्दी ब्लॉग परिवार में आपका स्वागत है ,अपनी लेखनी से हिन्दी में योगदान दें ।

    किसी प्रकार की कोई सहायता जगत के लिए पूरे ब्लॉग जगत से निसंकोच प्रश्न करें ,

    धन्यवाद
    अपनी अपनी डगर

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